रिपोर्ट:- शरद मिश्रा “शरद”
लखीमपुर खीरी। बीते लगभग दो दशक पूर्व की बात करें तो पक्षी गिद्धराज काफी संख्या में देखे जाते थे। इन्हें पर्यावरण का सफाई कर्मचारी भी कहा जाता है क्योंकि जब किसी जानवर की मौत होती थी तो बस्ती वाले उसे गांव के बाहर कहीं एकांतवास में डाल देते थे और यही पक्षी गिद्धराज उस मरे हुए जानवर को खाकर पर्यावरण
को दूषित होने से बचाते थे, मगर जैसे-जैसे समय बदला और शरीर के रोगों को खत्म करने के लिए एक से एक हाई डोज की अंग्रेजी दवाओं ने बाजारों में डेरा डाल लिया। जब किसी जानवर को कोई बीमारी होती तो डॉक्टर हाई डोज की उस अंग्रेजी दवाओं का प्रयोग करते।
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जिससे यदि जानवर बच गया तब तो ठीक है मगर यदि जानवर की मौत हो गई तो उसी जानवर का मांस खाने से उस दवा का दुष्प्रभाव पक्षी गिद्ध राज पर भी होने लगा। प्रकोप इतना बढ़ गया की पक्षी गिद्धराज विलुप्त होने लगे। धीरे-धीरे समय ऐसा आ गया की जब किसी जानवर की मौत के बाद उसे बस्ती से दूर फेंका जाता तो उसकी दुर्गंध बस्तियों तक जाती और वातावरण दूषित होता।
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बताते चलें की शुक्रवार को यूपी के जनपद लखीमपुर खीरी की तहसील निघासन अंतर्गत अंतर्वेद जंगल के समीप काफी संख्या में विलुप्त पक्षी गिद्ध राज देखे गए। जिन्हे देखने के बाद ऐसा प्रतीत होता है की एक बार फिर से पक्षी गिद्ध राज का कुनबा बढ़ रहा है और ये पहले की तरह अपनी सफाई व्यवस्था पर जुटकर वातावरण को दूषित होने से बचाएंगे।