लखीमपुर खीरी में स्थित अंतर्वेद जंगल आज भी कई रहस्यों को समेटे हुए है, जानिए अंतर्वेद जंगल का रहस्य।

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रिपोर्ट:- शरद मिश्रा “शरद”
लखीमपुर खीरी। यूपी का सबसे बड़ा जिला लखीमपुर खीरी कई रहस्यों को अपने अंदर समेटे हुए है। इन्हीं रहस्यों में से एक है अंतर्वेद जंगल, जो न केवल प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण है, बल्कि अपने अंदर महाभारत काल से जुड़े कई रहस्यों, संतों की तपोभूमि, और आस्था के अद्भुत प्रतीक भी ग्रहण किए हुए है।

पांडवों की अज्ञातवास की भूमि

लोगों विचारधारा के अनुसार, जब पांडव अज्ञातवास के दौरान गुप्त रूप से कई जगहों पर विचरण कर रहे थे, तब उन्होंने कुछ दिन अंतर्वेद जंगल में भी बिताया था। कहा जाता है कि महा बलशाली भीम ने अपनी गदा से जंगल के चारों ओर एक गहरी खाई खोद दी थी। लोगों का कहना है कि यह खाई कभी सूखती नहीं है, और जंगल के जंगली जानवर इसी जल से अपनी प्यास बुझाते हैं।

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गुफा जिसका रहस्य आज भी अनसुलझा

जंगल के भीतर एक विशाल और रहस्यमयी गुफा भी स्थित है। पुरानी कहावतों के अनुसार, जिस भी व्यक्ति ने इस गुफा में प्रवेश किया है, वह फिर कभी लौटकर बाहर नहीं आया। जिसके चलते सुरक्षा की दृष्टि से इसे बंद कर दिया गया था।

तपस्वियों की तपोभूमि

महाभारत काल के बाद यह जंगल साधु-संतों और ऋषि मुनियों की तपस्थली बन गया। कई ऋषियों और तपस्वियों ने यहां घोर साधना कर सिद्धियाँ प्राप्त कीं, और उनकी स्मृति में बनी समाधियाँ आज भी यहां देखी जा सकती हैं। इन्हीं घटनाओं के चलते इस स्थान को “अंतर्वेद जंगल” नाम मिला — अर्थात वह स्थल जहां भीतर से वेदों की अनुभूति होती है।

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सिद्ध बाबा और उनके अद्भुत साथी

मिली जानकारी के अनुसार महाभारत काल के बाद यहां एक सिद्ध बाबा भी इस जंगल में आए। जिनकी तप साधना और जीव जंतुओं से गहरे प्रेम की कहानियाँ आज भी लोगों के मुख से सुनने को मिलती हैं। कहा जाता है कि सिद्ध बाबा के पास एक शेर, एक मगरमच्छ और एक बंदर ‘मथुरादास’ था। शेर पर वे सवारी कर क्षेत्र में भ्रमण करते थे, मगरमच्छ की पीठ पर बैठकर सरोवर से कमल के फूल तोड़ते थे और बंदर मथुरादास जंगल से ताजे फल लाकर उन्हें देता था।

गुरु पूर्णिमा पर लगता है मेला

हर साल गुरु पूर्णिमा के पर इस रहस्यमयी जंगल में भारी संख्या में श्रद्धालुओं का आना जाना रहता है। लोग सिद्ध बाबा के स्मृति स्थल पर माथा टेक कर आशीर्वाद लेते है और भंडारे व पूजा-पाठ का आयोजन करते हैं। यह दिन यहां धार्मिक एकता और अध्यात्मिक ऊर्जा से सराबोर होता है।

इस तरह यहां पहुंचे

यह ऐतिहासिक और रहस्यमयी जंगल जनपद मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर, ढखेरवा होते हुए कार्तनियाघाट रोड पर स्थित है। सड़क मार्ग से यहाँ पहुँचना आसान है, लेकिन जंगल में प्रवेश के लिए प्रशासन की अनुमति लेना जरूरी है।

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