रिपोर्ट:- दीप शंकर मिश्र “दीप”
लखनऊ। यूपी में गन्ने की खेती करने वाले गन्ना किसानों के लिए पारंपरिक खेती एक नए जमाने की शुरुआत बनकर सामने आ रही है। तेजतर्रार एवं अत्यंत कर्तव्यनिष्ठ आयुक्त गन्ना एवं चीनी डॉ. प्रमोद कुमार उपाध्याय की अध्यक्षता में ऑनलाइन की गई बैठक में पारंपरिक खेती की विशेषता और इसके लाभों पर विस्तृत बातचीत हुई।
गन्ना आयुक्त प्रमोद कुमार उपाध्याय ने बताया कि मानव निर्मित खादों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से न केवल जमीन की उर्वरता घट रही है, बल्कि किसानों की लागत भी बढ़ती जा रही है। इसके विपरीत पारंपरिक खेती से क्षमता बनी रहती है और वातावरण, जलवायु व इंसान के स्वास्थ्य को भी लाभ पहुंचता है।
उन्होंने कहा कि हमें खेती के उस आकर को अपनाना होगा जिसमें किसान स्थानीय संसाधनों का उपयोग करके मजबूत खेती कर सकें। पारंपरिक खेती के सहारे उत्पादन लागत घटती है, जमीन की स्वास्थ्य सुधरता है और किसान को लाभकारी मूल्य भी मिलता है।
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पारंपरिक खेती: बिना बाहरी संसाधन की कृषि पद्धति
गन्ना आयुक्त प्रमोद कुमार उपाध्याय ने बताया कि पारंपरिक खेती एक ऐसी पद्धति है जिसमें किसान को बाजार से मानव निर्मित खाद खरीदने की आवश्यकता नहीं होती। यह खेती गाय के गोबर, गोमूत्र, नीम, वर्मी कंपोस्ट आदि पर निर्भर होती है, जिससे पैदावार लागत कम और मुनाफा अधिक होता है।
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गन्ना किसानों ने अनुभव किए साझा
बैठक में जनपद सहारनपुर के किसान संजीव सिंह, जनपद शाहजहांपुर के किसान संजय कुमार और लखीमपुर खीरी के अजीत कुमार ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि पारंपरिक खेती ने न केवल उनके खेतों की उपज और जमीन की श्रेष्ठता को बेहतर किया है, बल्कि उनकी आमदनी में भी वृद्धि हुई है।
इनके अनुसार गाय के गोबर और गाय के गोमूत्र से एक पारंपरिक, जैविक तरल उर्वरक तैयार होता है जो पौधों के विकास और मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है। इसके उपयोग से रासायनिक खादों पर खर्च पूरी तरह बचता है। इसके अलावा कीट पर संयम के लिए पारंपरिक तरीके अपनाने से उनकी गन्ने के फसलें सुरक्षित रहीं।
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योगी सरकार ने दिया बढ़ावा
गन्ना विभाग और योगी सरकार की पहल से अब कई जिलों में किसानों को पारंपरिक खेती का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। विभिन्न अधिकारियों और वैज्ञानिकों ने भी कार्यक्रम में भाग लिया और इसे किसानों के लिए लाभकारी कदम बताया।
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