मेरे अस्तित्व को मिटने से बचा लो, मेरे प्राण निकले जा रहे है, कोई तो मेरी वेदना को समझे।

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रिपोर्ट:- शरद मिश्रा “शरद”
निघासन खीरी: में चीख रही हूं, मैंने आप सबको जीवनदान दिया है, आपकी प्यास बुझाई है और न जाने कितनी गंदगी आपकी अपने आंचल में समेट लिया है। अपने जल से आपकी फसल का उत्पादन कराकर आपका पेट भी भरा है। लेकिन आपका जब पेट भर गया तो मानव तू मेरे लिए निरर्थक साबित हो रहा है। में वेदना से चीख रही हूं, चिल्ला रही हूं, मेरे प्राण निकले जा रहे है।

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न कोई समाजसेवी ध्यान देने वाला है न कोई सरकार ध्यान देने वाली है न कोई नेता सुनने वाला है। में अपनी वेदना किसे सुनाऊं कोई तो सुन ले। प्रकृति ही शायद मेरी वेदना सुनेगी क्योंकि में भी कभी जीवन दायिनी थी। आज में अपने प्राणों को बचाने के लिए खुद त्राहिमाह त्राहिमाह कर रही हूं। देखती हूं कौन मुझे संवारता है, सजाता है और मेरे पुराने स्वरूप को जीवंत करता है। में उसकी ऋणी रहूंगी क्योंकि में आपकी सरयू हूं।

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निघासन से गुजरने वाली सरयू नदी आज अपने अस्तित्व को खोती नजर आ रही है। जो कभी लोगों की प्यास बुझाती थी वो ही आज स्वयं प्यासी है। भू माफियाओं ने राजनीतिक संरक्षण प्राप्त कर सरयू के आंचल को काटकर कब्जा कर लिया है। जिसके चलते सरयू नदी अब सिमट कर नाला हो गई है। सरयू क्षेत्रवासियों से अपने जीवंत के लिए गुहार लगा रही है और कह रही है की कभी मेरे स्वच्छ जल से लोग स्नान करते थे मेरे प्रति लोगों की आस्था देखते बनती थी मगर आज वही लोग मेरे ऊपर संकट आने से दूर भाग रहे है।

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न जाने कितने बच्चे मेरे स्वच्छ जल में स्नान किया करते थे और में भी कई लोगों के चर्म रोगों को चट से दूर कर देती थी। आज वही बच्चे कोई नेता बन गया तो कोई अधिकारी बन गया मगर अपनी सरयू को भूल गया। अरे कोई तो मेरी वेदना को समझे और मेरे दर्द को महसूस करे, में तड़प रही हूं कोई तो मुझे संवारे। में फिर से कल कल की आवाज में बहना चाहती हूं कोई तो मेरे अस्तित्व को मिटने से बचा ले। आप मुझे भूले मत क्योंकि में वही सरयू हूं जो कभी आपकी आस्था केंद्र थी मुझे मिटने से बचा लो।

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