105 साल बाद भी ज़िंदा है उस अंग्रेज का नाम जिसने थरथरा दी थी लखीमपुर की धरती !!

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रिपोर्ट:- शरद मिश्रा “शरद”
लखीमपुर खीरी। देश की आज़ादी के खातिर अपना सब कुछ दांव लगाने वाले नसीरुद्दीन मौजी, माशूक अली और बशीर अली जैसे क्रांतिकारियों की वीरता भरी शहादत को भले ही लोगों ने भुला दिया हो, लेकिन जिन अंग्रेजों के खिलाफ उन्होंने बगावत की, उनका नाम आज भी शहर की सबसे प्रमुख धरोहर पर कायम है।
शहर के बीचोंबीच स्थित विलोबी हॉल और विलोबी ट्रस्ट, आज भी 105 साल पुराने एक अंग्रेज डीएम विलोबी की याद में बना खड़ा है, जिसकी हत्या 26 अगस्त 1920 को तीन स्वतंत्रता सेनानियों ने की थी। इस वीरता की कीमत तीनों को फांसी के फंदे पर चढ़कर चुकानी पड़ी, लेकिन आज तक उनकी स्मृति में न कोई शिलापट्ट लगा, न कोई स्मारक।

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गुलामी की पहचान बना स्मारक, शहीदों को नहीं मिला सम्मान

1920 में अंग्रेजी शासन ने विलोबी की याद में “विलोबी मेमोरियल हॉल” का निर्माण कराया था। वही हॉल आज भी उसी नाम से जाना जा रहा है। यहां तक कि आसपास की 49 दुकानों पर “विलोबी मार्केट” के नाम के फ्लैक्स तक लगे हैं।
वहीं दूसरी ओर, इन तीन शहीदों के नाम आज भी आम जनता को तक नहीं पता। न किसी सरकारी कागजातों में जिक्र है, न किसी सरकारी कार्यक्रम में याद किया जाता है।

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पूर्व डिप्टी सीएम ने भी उठाई आवाज़

हाल ही में जिले के एक कार्यक्रम में शामिल हुए पूर्व उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने भी ट्रस्ट और हॉल का नाम बदलने की वकालत की। उन्होंने कहा, “अंग्रेज अधिकारी के नाम पर ट्रस्ट चलाना शर्मनाक है। इसे शहीदों के नाम पर किया जाना चाहिए।

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नशेड़ियों का अड्डा बना ऐतिहासिक मैदान

वर्तमान समय में विलोबी मैदान में नशेड़ी व असामाजिक तत्वों का जमावड़ा देखा जाता है। शहरवासियों की मांग है कि इस मैदान को नशे के अड्डे से मुक्त कराकर इसे शहीदों की स्मृति में एक गरिमामयी स्थल बनाया जाए।

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परिसर में गंदगी का अम्बर

विलोबी मेमोरियल हाल का ग्राउंड इतना बड़ा है कि यहां बड़े से बड़े कार्यक्रम आसानी से निपट जाते है मगर इन दिनों लोगों को इस ऐतिहासिक धरोहर से कोई मतलब नहीं है क्योंकि यहां पर व्याप्त गंदगी यह बताती है कि लोग सफाई को लेकर कितना जागरूक है। शासन प्रशासन भी विलोबी मेमोरियल हाल के ग्राउंड की सफाई पर ध्यान नहीं देता जबकि कार्यक्रम के लिए सबको यही ग्राउंड नजर आता है।

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