रिपोर्ट:- शरद मिश्रा “शरद”
लखीमपुर खीरी। दुधवा नेशनल पार्क में गैंडों के हिफाजत को लेकर एक और बेहतर कदम उठाया गया है। वन विभाग अब दो और गैंडा रिहैबिलिटेशन एरिया तैयार करेगा। इसके लिए योगी सरकार ने डेढ़ करोड़ रुपये की हामी भर दी है। यह पहल दुधवा में गैंडों की संख्या बढ़ाने और उनके हिफाजत को बल देने के उद्देश्य से की जा रही है।
क्या जंगल में छुपा था 115 साल पुराना रहस्य? दुधवा में मिला हैरान कर देने वाला आर्किड फूल !!
दुधवा नेशनल पार्क के डिप्टी डायरेक्टर ने बताया कि स्वीकृत धनराशि का उपयोग गैंडों के लिए माफिक प्राकृतिक आवास तैयार करने, झीलों के निर्माण, उपयुक्त वनस्पति हिफाजत और क्षेत्र के समग्र रखरखाव में किया जाएगा। परियोजना के अंतर्गत एक करोड़ सत्ताईस लाख रुपये इन्हीं प्रमुख कामों के लिए निर्धारित किए गए हैं।
इसके अलावा, सात लाख रुपये जंगली जीवों की चिकित्सा और आवश्यक रसायनों की खरीद पर खर्च किए जाएंगे। बड़ी संरचनाओं के बनावट के लिए चार लाख अस्सी हजार रुपये और छोटे बनावट कार्यों के लिए तीन लाख रुपये आवंटित किए गए हैं। गतिविधि और प्रबंधन की आधुनिक तकनीकों के लिए सात लाख रुपये की मशीनों और उपकरणों की खरीद पर खर्च होगी।
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डिप्टी डायरेक्टर के अनुसार, इससे पहले भी दो रिहैबिलिटेशन एरिया बनाए जा चुके हैं और नए प्रयासों से गैंडों की सुरक्षा और उनके पुनर्वास में और तेजी लाई जाएगी। साथ ही, जंगली जीवों के अवैध शिकार और तस्करी को रोकने के लिए व्यापक जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाए जाएंगे।
गैंडों के संरक्षण में एक नया अध्याय
दुधवा नेशनल पार्क उत्तर भारत में जैव विविधता का प्रमुख केंद्र है, अब गैंडों के पुनर्वास का आदर्श स्थल बनने की ओर अग्रसर है। वन विभाग का यह प्रयास केवल गैंडों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे भौतिक वातावरण के लिए पॉजिटिव संकेत है।
दुधवा में 115 साल बाद मिली दुर्लभ आर्किड ने चौंकाया था
दुधवा नेशनल पार्क से एक बड़ी खुशखबरी निकलकर सामने आई है। यहां 115 वर्षों बाद आर्किड की एक दुर्लभ प्रजाति को फिर से देखा गया है। सठियाना रेंज और दक्षिण सोनारीपुर के घने जंगलों में एकाएक खिले इस दुर्लभ प्रजाति के फूल ने वन विभाग के अधिकारियों को रोमांचित कर दिया है।
बताया जाता है कि इस विशेष फूल को आखरी बार सन् 1909 में दुधवा नेशनल पार्क के ही जंगलों में देखा गया था, उसके बाद यह नस्ल विलुप्त मानी जा रही थी। सालों के इंतजार के बाद इस नस्ल का पुनः नजर आना न केवल दुधवा पार्क की अनुकूलनशील का प्रतीक है, बल्कि यह जंगलों के देखरेख की दिशा में किए गए प्रयासों की सफलता का संकेत भी देता है।
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