लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्रामीण जल संकट और पारंपरिक जल स्रोतों के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए एक अहम फैसला लिया है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत राज्य के सभी जनपदों में पुराने कुओं का जीर्णोद्धार किया जाएगा। यह काम प्रत्येक विकास खंड स्तर पर चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा। गर्मी के मौसम में जब तालाब और पोखर सूख जाते हैं, तब कुएं ही ऐसे जल स्रोत होते हैं जो ग्रामीणों के लिए जीवन रेखा बनते हैं। इन्हीं को ध्यान में रखते हुए ग्राम्य विकास विभाग ने यह योजना तैयार की है, ताकि परंपरागत जल स्रोतों को फिर से उपयोगी बनाया जा सके।
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जल संरक्षण और संस्कृति दोनों को मिलेगा बढ़ावा
ग्राम्य विकास आयुक्त ने इस संबंध में श्रम रोजगार उपायुक्तों को पत्र भेजकर कुओं के चिन्हांकन और कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं। इस योजना में केवल कुओं की मरम्मत ही नहीं, बल्कि उनका सौंदर्यीकरण और सामुदायिक उपयोग को भी बढ़ावा दिया जाएगा।
ग्रामीण समाज में कुएं केवल पानी का स्रोत नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों के केंद्र भी होते हैं। गांवों में विवाह, पूजा, छठ जैसे त्योहारों और अन्य आयोजनों में कुओं की विशेष भूमिका रही है। इस दृष्टि से भी उनका संरक्षण आवश्यक माना जा रहा है।
स्थानीय रोजगार को भी मिलेगा बढ़ावा
इस पहल से ग्रामीणों को स्थानीय स्तर पर रोजगार भी मिलेगा। मनरेगा के तहत होने वाले कार्यों में अधिकतम श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी, जिससे ग्रामीण आजीविका को बल मिलेगा और पलायन की समस्या पर भी कुछ हद तक नियंत्रण पाया जा सकेगा।
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नए जल प्रबंधन मॉडल की ओर कदम
राज्य सरकार की यह पहल पारंपरिक जल संरचनाओं के संरक्षण के साथ-साथ स्थानीय जल प्रबंधन को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। यह न सिर्फ जल संकट से निपटने में सहायक होगा, बल्कि गांवों की आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की मिसाल भी बनेगा।
उत्तर प्रदेश के गांवों में कुएं फिर से जीवंत होने को तैयार हैं। यह पहल जल संकट के समाधान के साथ-साथ गांवों की सांस्कृतिक आत्मा को संजोने का भी एक सशक्त प्रयास है।
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