मदर्स डे स्पेशल रिपोर्ट (11 मई 2025): हर साल मई के दूसरे रविवार को ‘मदर्स डे’ मनाया जाता है, लेकिन सच तो यह है कि मां केवल एक दिन नहीं, हर पल, हर सांस में बसी होती है। वो बिना वेतन के सबसे बड़ी कार्यकर्ता है—एक रसोई से लेकर रिश्तों तक सब संभालने वाली, अपनी नींद, भूख और सपनों को ताक पर रखकर परिवार को संवारने वाली।
गांव की माएं – संघर्ष की असली तस्वीर
ग्रामीण भारत की माएं आज भी जलाने के लिए लकड़ी, पीने के लिए पानी और बच्चों के लिए पढ़ाई के साधन जुटाने के संघर्ष में जुटी हैं। फिर भी उनके चेहरे पर शिकायत नहीं, सिर्फ ममता की मुस्कान है।
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शहर की माएं – दोहरी भूमिका की मिसाल
शहरों में माएं नौकरी और घर दोनों मोर्चों पर लड़ रही हैं। वे ऑफिस की डेडलाइन भी पूरी करती हैं और बच्चों की होमवर्क भी। थकती हैं, लेकिन झुकती नहीं।
“मां” सिर्फ रिश्ता नहीं, एक पूरी दुनिया है।
इस मदर्स डे पर ज़रूरत है सिर्फ फूल और तोहफे देने की नहीं, बल्कि एक वचन देने की —
- मां के साथ समय बिताने का
- उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखने का
- और उनके बिना कहे उनकी बात समझने का
- मां की ममता को सिर्फ शब्दों में नहीं, अपने कर्मों में सम्मान दें।
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