पचपेड़ी घाट मार्ग को लेकर राहगीरों के लिए बड़ी खबर, अब जिला मुख्यालय का सफर और कठिन!! अलर्ट

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लखीमपुर खीरी। निघासन से जिला मुख्यालय की दूरी को बेहद कम करने वाला पचपेड़ी घाट मार्ग पर पानी बढ़ने के चलते राहगीरों को सावधानी बरतने की जरूरत है। ऐसे में बिल्कुल जोखिम न उठाए और अन्य मार्गों से जिला मुख्यालय का सफर तय करें। दरअसल बीते दिनों हुई बरसात के चलते शारदा नदी का जल स्तर बढ़ा है जिसके चलते निघासन से लखीमपुर जाने वाला शार्टकट पचपेड़ी घाट मार्ग पर भी जल स्तर बढ़ गया है। ऐसे में बहुत से राहगीर जोखिम उठाकर इस मार्ग से निकलते है।

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चुनावी मुद्दा बनकर रह गया पचपेड़ी घाट पुल

क्षेत्र का सबसे बहुचर्चित मुद्दा पचपेड़ी घाट का पुल जो पिछले काफी सालों से हर नेता को निहारता आ रहा है कि कोई जनप्रतिनिधि इस मुद्दे पर पूर्णविराम लगाए। निघासन से महज 7 किमी दूरी पर स्थित पचपेड़ी घाट, जहाँ यदि पुल निर्माण हो जाए तो जिला मुख्यालय की दूरी भी काफी कम हो जाएगी। जिससे क्षेत्रवासियों को मुख्यालय जाने के किये काफी सहजता होगी। यह मार्ग निघासन होते हुए दुधवा नेशनल पार्क को भी जोड़ता है। इस पुल के बनने से सबसे ज्यादा सहूलियत सम्पूर्ण क्षेत्र निघासन को होगी।

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जब केंद्र व राज्य में सरकार अलग पार्टियों की थी तो लोगों ने यह उम्मीद लगाई थी की यदि केंद्र व राज्य दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकार होगी तो शायद इस पुल का निर्माण सम्भव है। क्योंकि कई बार तो नेताओं ने चुनाव जीतने के लिए इस पुल निर्माण के लिए सरिया, गिट्टी, मौरंग भी गिरवा दिया था और चुनाव होने के बाद सामान को वहां से उठवा भी लिया मगर इस पचपेड़ी घाट पुल का निर्माण कार्य शुरू न हो सका। जनता का कहना है की केंद्र व राज्य दोनों जगह सरकार बीजेपी की है। यदि जनप्रतिनिधि इसके बारे में तनिक भी विचार कर लें तो कार्य पूरा किया जा सकता है। मगर जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण आज भी पचपेड़ी घाट पुल का मुद्दा वैसे का वैसे ही है।

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हालांकि जब इस रास्ते से गुजरने वाली शारदा नदी का जल स्तर कम हो जाता है तो पैंटून का पुल बनाकर राहगीरों के लिए रास्ता शुरू किया जाता है मगर जब शारदा नदी का जलस्तर बढ़ जाता है तो पानी के बहाव में ये पैंटून भी बह जाते है और रास्ता बंद हो जाता है। जिससे राहगीरों को अन्य मार्गों से दोगुना सफर तय कर मुख्यालय जाना पड़ता है। ऐसा लगता है कि निघासन क्षेत्रवासियों के लिए यह पुल निर्माण मात्र एक सपना ही बचा है जिसे न जाने कब कौन सरकार पूरा करेगी।

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