रिपोर्ट:- शरद मिश्रा “शरद”
लखनऊ। यूपी के जनपद बहराइच अंतर्गत ब्लॉक मिहीपुरवा में स्थित कारीकोट मंदिर अपने आप में एक अद्भुत आस्था का प्रतीक है। यहां जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से अपनी मनोकामना मांगता है तो वह पूरी जरूर होती है। जिसके चलते यहां हमेशा श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। इस मंदिर की मान्यता है की जो भी यहां हवनकुंड में
नारियल चढ़ाता है तो माता रानी उस पर जरूर प्रसन्न होती है और उसकी मन की मुराद पूरी होती है। यहां गर्मियों में गंगा दशहरा पर बहुत बड़ा मेला लगता है। इस मेले में यूपी ही नही अन्य राज्यों से भी दुकानदार आते है। इस मेले में जरूरतों की हर चीज उपलब्ध रहती है तो वही सुरक्षा की दृष्टि से भारी संख्या में पुलिस बल भी मौजूद रहता है।
कारीकोट मंदिर का आखिर क्या है इतिहास, आइए जानते है:-
कारीकोट मंदिर के महंत विनोद कुमार मिश्रा ने बताया कि यह मंदिर लगभग आठ सौ वर्ष पुराना है और यह मंदिर राजा करिया के समय का बना हुआ है।
महंत विनोद मिश्रा ने मंदिर के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि पूर्वजों के अनुसार यहां के राजा करिया पास के जंगल में शिकार खेलने गए थे तो वहां माता जी को एक छोटी कन्या के रूप में अकेली बैठी हुए देखा था। तब उन्होंने कन्या रूपी माता से पूछा कि आप यहां जंगल में अकेली क्या कर रही हो तो उन्होंने बताया की उनका कोई नही है वह अकेले ही है।
फिर क्या राजा करिया उन्हे अपने साथ कारीकोट ले आए। कारीकोट में एक पकड़िया का पेड़ है, जो उस समय छोटा पौधा था। राजा करिया माता जी को उसी पेड़ के नीचे उतारकर अपने किले पर पहुंचे भी नहीं थे की माता अदृश्य होकर उसी पकड़िया के पेड़ में समा गई। राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ की आखिर कन्या गई कहां फिर रात्रि में माता ने राजा करिया को स्वप्न के दर्शन देते हुए बताया की वह उसी पकड़िया के पेड़ में समा गई है। उसके बाद उसी स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया। तब से लेकर आज तक यहां दूर दूर से श्रद्धालु माता जी के दर्शन हेतु आते है।
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