रिपोर्ट:- शरद मिश्रा “शरद”
लखीमपुर खीरी: जिले के सैदापुर देवकली में स्थित राजकीय रेशम फार्म कीट पालन और रेशम उत्पादन का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनकर उभरा है। लगभग 24 एकड़ में फैला यह फार्म, न सिर्फ शहतूत के पौधों के चारे का उत्पादन करता है, बल्कि रेशम कीट पालन की तकनीक और प्रशिक्षण में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
यह केंद्र उत्तर प्रदेश सरकार की रेशम उद्योग को बढ़ावा देने की योजनाओं का अहम हिस्सा है। यहां उगाए गए शहतूत के पौधे रेशम कीटों (Silkworms) के लिए पोषण का प्रमुख स्रोत हैं, जिससे उच्च गुणवत्ता का रेशम प्राप्त किया जाता है।
जिले में अन्य केंद्र जैसे मितौली, मोहम्मदी, तेंदुआ और मैगलगंज में भी रेशम उत्पादन किया जा रहा है, लेकिन सैदापुर देवकली का यह फार्म सबसे पुराना और बड़ा केंद्र माना जाता है। यहां न केवल किसान रेशम उत्पादन का प्रशिक्षण लेते हैं, बल्कि कई लोग इसे रोजगार का स्थायी स्रोत भी बना चुके हैं।
रेशम कैसे बनता है? (रेशम उत्पादन की प्रक्रिया)
- शहतूत की पत्तियों से पोषण:
रेशम के कीट (Bombyx mori) को शहतूत की पत्तियाँ खिलाई जाती हैं, जो उनकी मुख्य खुराक होती हैं। - कोया बनाना:
जब कीट तैयार हो जाते हैं, तो वे अपने चारों ओर महीन धागे से एक कोया (Cocoon) बना लेते हैं। यह धागा ही रेशम होता है। - कोयों से रेशम निकालना:
कोयों को गर्म पानी में डुबोकर या भाप में गर्म करके नरम किया जाता है, जिससे धागा आसानी से निकाला जा सके। इस प्रक्रिया को रीलिंग कहा जाता है। - धागे की प्रोसेसिंग:
निकाले गए रेशम के धागों को साफ कर, रंगकर और बुनाई के लिए तैयार किया जाता है।
मुख्य विशेषताएं:
- 24 एकड़ में फैला फार्म
- शहतूत के पौधों की खेती
- प्रशिक्षण और रोजगार का केंद्र
- रेशम उत्पादन की पूरी प्रक्रिया
- लखीमपुर खीरी जिले का सबसे पुराना रेशम फार्मलखीमपुर खीरी का एक ऐसा अनोखा फार्म जहां पत्ते खाकर कीड़े देते है करोड़ों का फायदा।
यह फार्म रेशम उत्पादन की दिशा में स्थानीय किसानों के लिए एक नई आशा की किरण बनकर उभरा है। भविष्य में इसके विस्तार और आधुनिक तकनीक के समावेश से यह फार्म राज्य स्तर पर और भी प्रमुख स्थान हासिल कर सकता है।



